मकाँ

मकाँ

यहाँ मकाँ का मिज़ाज़ थोड़ा अलग होता है
छत नहीं होती
इसलिए रात को सितारों तले छत पर
बातें भी नहीं होती
ना छत की बातें होती है
ना पानी छिटक कर कोई छत को ठंडा करता
ना घर जुड़े होते हैं की फांद कर चले गए

ऊपरी मंजिल पर साँसें बसती हैं
हर तरफ खिलखिलाहटों का बोसा है
बच्चों का कमरा है
और उनकी छत पर
पूरी कायनात का मंसूबा है
उस मंसूबे में हमारी पूरी कायनात

नीचे मेहमान खाना है
हालाँकि वहाँ कोई बैठा नहीं है कभी
और बैठता है कोई
तो समझ लें की
दिल में जगह करना बाकि है अभी

बगल में सलीके से दस्तरख़ान बिछा है
आठ कुर्सियों वाली मेज़ पर
बीच में नक्काशी वाली शीशे की प्लेट है
तुर्की से लाया मर्तबान
कोने में egypt का हुक्का
रुसी झूमर रौशनी बिखेरता है

महीन रिश्तों को इतने तकल्लुफ में कैसे सिये कोई?

आगे बढ़ते ही जिंदगी शुरू होती है
रसोई घर से
सारा वक़्त वही गुजरता है
थोड़ा खाना बनाने में
ज्यादा बेगम से गुफ़्तगू करने में
मेरी नज़्मों का पहला पड़ाव है वो
जब तक बीवी के तर्कों में डुबकी ना लगा ले
आगे बढ़ने की ज़ानिब नहीं है उनमें

रसोई घर से
नीचे की ओर जाओ तो एक तहख़ाना है
अँधेरा नहीं है
काफी सामान भी रखा है
ओर बहुत सी यादें
उनमें से आज कुछ ऊपर लाया हूँ
दीवार ढूँढ रहा हूँ
कल को गर तहख़ाने में ही रह गयी
तो कैसे पहचानेगा मेरा आने वाला कल?

यहाँ मकाँ का मिज़ाज़ थोड़ा अलग होता है
रिश्तों का एहसास
सिर्फ
दीवारों पर ही टंगा होता है
यहाँ मकाँ का मिज़ाज़ थोड़ा अलग होता है

संदीप व्यास
२३ अप्रैल २०१८

*Pic Credit  – https://afremov.com/summer-house-palette-knife-oil-painting-on-canvas-by-leonid-afremov-size-24-x36.html

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