पढ़ी लिखी अनपढ़

“हे भगवान माँ, यह तो बहुत बुरी बात है !!”, माँ से फ़ोन पर रोज़ाना की बात चीत करते हुए प्रिया अपनी उत्तेजना पर क़ाबू नहीं रख पायी।
शादी के कुछ समय बाद ही विवेक और प्रिया अमेरिका में आ बसे थे बस तब से ही माँ के साथ रोज़ाना की बातचीत ज़िंदगी का क्रम बन गया था।
अगर आप एक भारतीय महिला हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि आपकी बातचीत हो और घर में काम करने वाली बाई का ज़िक्र ना हो।आज माँ को उनकी कामवाली बाई के स्वास्थ्य की चिंता हो रही थी क्योंकि उसने लगातार तीसरी साल अपना गर्भपात करवाया था, कारण वही पुराना था: कोख में एक बार फिर लड़की का आ जाना। प्रिया हमेशा से ही नारी शक्ति की समर्थक थी और लिंग के आधार पर गर्भपात को बहुत ही हीन दृष्टि से देखती थी। बल्कि वह तो गर्भपात के भी ख़िलाफ़ थी और सिर्फ़ माँ बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अत्यावश्यक होने पर ही इसे उचित मानती थी।“ बिटिया, अब इतनी परेशान मत हो। तुम्हें तो पता है ना कि अपनी बाई हरियाणा से है और वहाँ का माहौल तो तुम जानती ही हो। फिर ग़रीबी में इतने बच्चों को पालना कोई आसान काम तो नहीं और फिर लड़कियाँ हो तो दहेज की समस्या भी तो गम्भीर है।” माँ हरियाणा के आर्थिक, सामाजिक हालात बता कर उसे ठंडा मीठा करने की कोशिश कर रही थी।
“ बस भी करो माँ। हमारी ऐसी सोच ही हालात सुधरने नहीं देती। किसने कहा था उसे इतने सारे बच्चे करने को? कितने सस्ते तरीक़े हैं आजकल परिवार नियंत्रण के!! और लिंग के आधार पर भ्रूण हत्या के तो मैं सख़्त ख़िलाफ़ हूँ! उस मासूम की क्या ग़लती माँ? मुझे तो ऐसे विचार भी बहुत घिनौने लगते हैं और मेरा तो ख़ून खौल जाता है यह सोच कर कि हमारे समाज में आज भी ऐसी बुराइयाँ हैं!!” प्रिया का ग़ुस्सा चरम सीमा पर था।

५ वर्ष उपरांत:

अपनी डॉक्टर के ऑफ़िस से बाहर आते ही प्रिया ने विवेक को फ़ोन मिलाया जो कि अपने कार्यवश अट्लैंटा गया हुआ था।
“ अरे जानू! क्या ख़ुशख़बरी है? क्या मैं अकेला ख़ुशक़िस्मत राजा बनने वाला हूँ अपनी रानी और दो राजकुमारियों के साथ या कोई राजकुमार भी आने की तैयारी में है?” विवेक की उत्सुकता और ख़ुशी उसके शब्दों से साफ़ छलक रही थी।जब कभी वह अपने आने वाले बच्चे के लिंग को लेकर विवेक से पूछती तो वह उसे यूँही चिडाता, कहता मेरी तो हर तरह से ऐश है। शादी के दो साल बाद ही प्रिया और विवेक की ज़िंदगी ख़ुशियों से भर गयी जब नन्ही सी “मिली” ने उनकी ज़िंदगी में क़दम रखा।और एक उचित अंतराल के बाद उन्होंने अपने परिवार को पूर्ण बनाने के लिए दूसरे बच्चे की सोची। आज डॉक्टर ने प्रिया का अल्ट्रसाउंड किया था और उसे अपने होने वाले बच्चे का लिंग बताया था। अमेरिका में लिंग बताना वैधिक भी है और स्वाभाविक भी, सब कुछ ख़ुद ही करना होता है तो लिंग पहले पता होने से माँ बाप को सुविधा हो जाती है।“ वापस बेटी ही है विवेक।” प्रिया की आवाज़ में घुली निराशा विवेक से छुपी नहीं रही। पर विवेक ने उस समय कुछ कहना उचित नहीं समझा। ऐसे भी दोनो के बीच में इस बात पर कई बार पहले भी विचार विमर्श हो चुका था। विवेक को बच्चों से बहुत प्यार था और उसे इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था कि उसे बेटा है या बेटी। प्रिया भी ऊपर से तो उसकी हाँ में हाँ मिलाती पर अंदर मन ही मन भगवान से बेटे के लिए प्रार्थना करती।उसके दिमाग़ में एक सम्पूर्ण परिवार की रूपरेखा थी जहाँ माँ बाप के अलावा दो बच्चें हो जिनमें से एक बेटा हो और एक बेटी, उसका तर्क था कि ज़िंदगी में सबको चीनी नमक दोनो चाहिए। बात भी सही है पर मज़े की बात यह थी की वो दो बेटों के होने की सम्भावना से परेशान नहीं होती थी पर दो बेटियों का होना उसे कहीं थोड़ा चिंतित कर देता था।

दूसरे दिन जब विवेक अट्लैंटा से वापस लौटा तो प्रिया ने मुस्कान के साथ ही उसका स्वागत किया पर उसे बाहों के घेरे में लेते हुए विवेक ने अपने जीवन साथी की असहजता को भी महसूस किया। साथ रहते हुए पति पत्नी कैसे एक दूसरे को पढ़ना जान लेते हैं ना! तभी तो खाने के वक़्त मिली के साथ मिल कर हँसी मज़ाक़ की बातों से वह माहौल को ख़ुशनुमा बनाने की कोशिश कर रहा था।देर रात को उन्होंने भारत में अपने माता पिता के साथ भी यह ख़ुशख़बरी बाँटी।सभी इस समाचार से बहुत ख़ुश हुए पर अंत में हल्के शब्दों में यह भी ज़िक्र हुआ कि काश भगवान इस बार लड़का ही दे देता। प्रिया के चेहरे पर तनाव देखते ही विवेक ने जल्दी से विषय बदल दिया और बात आयी गयी हो गयी। 


अगले दिन ऑफ़िस से आते वक़्त विवेक मूवी के टिकट्स ले आया था। मूवी के बाद उन सबने रात का खाना भी बाहर ही खाया पर विवेक ने यह महसूस किया कि उसकी इन कोशिशों के बाद भी प्रिया का मन उखड़ा सा ही था।शायद उसे यह स्वीकार करने के लिए कुछ वक़्त चाहिए,विवेक ने गहरी साँस लेते हुए सोचा।
दूसरे दिन सुबह विवेक के सहकर्मी की पत्नी कामिनी ने प्रिया को एक किटी पार्टी में अपने घर बुलाया।प्रिया का बिल्कुल भी जाने का मन नहीं था क्योंकि उसे ऐसी पार्टीज़ में होने वाली बातें बहुत बनावटी लगती थी और कोफ़्त होती थी।पर विवेक के बहुत ज़ोर देने पर वह बेमन से जाने को तैयार हो गयी यह सोचकर की क्या पता कुछ मन ही बदल जाए।ओह… कितना ग़लत सोचा था उसने!!

 
जब वह वहाँ पहुँची तो गपशप का माहौल अपनी चरम सीमा पर था।प्रिया ने कामिनी को नवजात बेटे की बधाई दी और नींबू पानी का गिलास ले एक कोने में बैठ गयी। जल्द ही कामिनी ने बातचीत की बागडोर अपने हाथों में ले ली जिसका मुख्य केंद्रबिंदु था कि किस तरह उसकी माँ उसका सबसे बड़ा सहारा बनी और उसकी गर्भावस्था में उसका ख़याल रखा, वहीं उसके सास ससुर से उसे केवल निराशा ही मिली क्योंकि वो उसे इस अवस्था में सम्भालने नहीं आए।
“ पर वो क्यों नहीं आए कामिनी? कोई कारण तो बताया होगा उन्होंने तुम्हें?”, किसी ने बीच में पूछा।
“ मेरे ससुर जी ने अपने कुल्हे की हड्डी तोड़ ली, और क्या!! वो लोग तो किसी भी काम के नहीं हैं !!” कामिनी ने बहुत ही चिढ़ कर जवाब दिया।
“अरे, इस उम्र में कुल्हे की हड्डी तो बहुत मुश्किल से जुड़ती है तो उन्हें कौन संभाल रहा है वहाँ?” प्रिया ने एक सहज चिंता के साथ पूछा।
“ अब इस समय उन्हें कौन सम्भालेगा!! ख़ुद ही सम्भाले, आख़िर उन्हें हमारी परिस्थिति भी तो समझनी चाहिए। मेरे पास इस फ़ालतू की नाटकबाज़ी के लिए ना तो वक़्त है और ना ही धैर्य।”कामिनी के जवाब में उसकी चिढ़ साफ़ झलक रही थी। अचानक उसने बातों का रूख मोड़ कर प्रिया को निशाना बना लिया,” तो डॉक्टर ने तुम्हें कब की तारीख़ दी है प्रिया? इस बार तो लड़का है क्या?”
“ नहीं हमारे यहाँ तो मिली की बहन ही आ रही है।” प्रिया ने काफ़ी सहज अन्दाज़ में जवाब देने की कोशिश की। “ओहो… फिर तो तुम्हें भी कामिनी की तरह ही समय रहते गर्भपात करवा लेना चाहिए।” अचानक सबके बीच से कोई मुँहफट महिला बोल गयी। कामिनी के आँखें तरेरने का भी उसपर कोई असर नहीं हुआ बल्कि और ढीठ बनकर बोली “भाई, परिवार तो पूरा तभी माना जाता है जब एक बेटा और बेटी हों। अब बेटी तो तुम्हारे है ही, फिर तो बेटे के लिए ही कोशिश करनी चाहिए तुम्हें!!” “ मुझे नहीं लगता की हम ऐसा कोई क़दम उठाएँगे, भगवान ने जो दिया है हम उसमें बहुत ख़ुश हैं।”प्रिया ने थोड़ा खीझते हुए जवाब दिया। “ओह … अच्छा,अच्छा! फिर एक और बच्चा करने का सोच रही हो तुम? अच्छा ही सोच रही हो वरना बुढ़ापे में एक बेटे की कमी बहुत खलेगी।” कामिनी की व्यंग्यात्मक मुस्कान प्रिया को अंदर तक चुभ गयी। उस रात प्रिया पूरी रात नहीं सो पायी।काफ़ी कोशिशों के बाद भी उसका मन बार बार इसी विषय की तरफ़ खिंच रहा था। वह बार बार अपने मन को समझाने की कोशिश कर रही थी कि उसका मन दूसरी बेटी होने को लेकर उद्विग्न नहीं है बल्कि एक बेटा और एक बेटी ना होने से उसका परिवार सम्पूर्ण नहीं होगा बस इसलिए विचलित है।


दूसरी सुबह जब विवेक ऑफ़िस चला गया तब प्रिया ने एक बार डॉक्टर के साथ मिलने का निर्णय लिया।कल की पार्टी के बाद से उसका सिर तनाव से फटा जा रहा था, विवेक से बात करने से पहले वह गर्भपात सम्बंधित पूरी जानकारी लेना चाहती थी।बेटे होने की ख़ुशी में दमकता कामिनी का चेहरा बार बार उसकी आँखों के आगे घूम रहा था।डॉक्टर के ऑफ़िस से जवाब आने के इंतज़ार में बैठे बैठे प्रिया विचारों में इतना खो गयी की उसे पता ही नहीं चला कि कब मिली ने अपने नन्हें नन्हें हाथों से बनाया एक छोटा सा कार्ड और फूलों का गुलदस्ता उसकी गोद में रख दिया।
“ये क्या है बेटू?” आश्चर्यचकित प्रिया ने पूछा।
“हैपी मदर्स डे माँ!” ये बोलते हुए मिली उसके गले में झूल गयी और प्यार से अपनी माँ को चूम लिया।
“ माँ कार्ड खोलो ना!! मैंने और सॉफ़्टी ने आपके लिए बनाया है…. जल्दी खोल के देखो ना माँ!” मिली ने मचलते हुए कहा।
“ अब यह सॉफ़्टी कौन है?” प्रिया ने मुस्कुराते हुए पूछा।
“ मेरी छोटी बहन माँ.. और कौन? जब वो मेरे जितनी बड़ी हो जाएगी ना तब वो भी आपके लिए ऐसा ही कार्ड बनाएगी। अभी मैंने हम दोनो की तरफ़ से बना दिया।और पापा कह रहे थे कि हम सब उसे ख़ूब प्यार करेंगे… है ना माँ?”
प्रिया को पता ही नहीं चला कि कब एक आँसू उसकी आँख से निकल कर उसके गाल पर लुढ़क गया, फिर दूसरा, फिर तीसरा। उसने अपनी नन्ही सी जान को कसकर बाहों में भर लिया और दिल के सारे ग़ुबार को आसूँओ में निकल जाने दिया।उसकी सारी दुविधा, सारा तनाव, सारी खीझ, सारा अनिश्चय आत्मग्लानि के आँसुओं में बह गया। पागलों की तरह वह अपनी इस नन्ही परी को चूमते हुए लगातार भगवान का धन्यवाद देती रही इस अमूल्य तोहफ़े के लिए।

ये क्या करने जा रही थी वो? कितना बड़ा पाप!! आत्मग्लानि से प्रिया का मन भर उठा।अचानक सालों पहले बोली अपनी ही बात याद आयी उसे,” लिंग के आधार पर भ्रूण हत्या के तो मैं सख़्त ख़िलाफ़ हूँ! उस मासूम की क्या ग़लती माँ? मुझे तो ऐसे विचार भी बहुत घिनौने लगते हैं और मेरा तो ख़ून खौल जाता है यह सोच कर कि हमारे समाज में आज भी ऐसी बुराइयाँ हैं!!”उसे ऐसा लगा कि भारत में उसके घर में काम करने वाली बाई उसपर हँस रही है।क्या अंतर था हरियाणा के उस छोटे गाँव से आने वाली उस महिला में और विश्व के सबसे विकसित देश अमेरिका के बड़े शहर में रहने वाली इस महिला में?? क्या अंतर है उस अनपढ़ बाई में और मुझ जैसी पढ़ीलिखी साक्षर में? ये कितनी अजीब बात है कि एक बार जन्म लेने के बाद तो इंसान ख़ुद के बच्चे के लिए अपनी जान भी दे देता है, वह बच्चा उसकी जान बन जाता है पर जब वह मासूम आपके रहमोकरम पर होता है तो अपनी सोच के तहत आप उसकी जान लेने से भी बाज़ नहीं आते।आज अगर उसके नन्हें फ़रिश्ते ने उसे नहीं रोका होता तो शायद आज वह भी वही ग़लती कर बैठती जो उसकी अनपढ़ कामवाली ने की थी और समाज के उच्च तबक़ों में उठने बैठने वाली पढ़ी लिखी, आधुनिक कामिनी ने। प्रिया अपने आप से बहुत शर्मिंदा भी हुई और दूसरी तरफ़ मन से एक बहुत बड़ा बोझ भी उतर गया।

शाम को जब विवेक औफिस से घर आया तो भीगी आँखों से प्रिया ने उसे सब कुछ सच सच बता दिया।विवेक ने धैर्यपूर्वक उसकी पूरी बात सुनी और उसे आश्वासन दिया कि वो अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ बहुत ख़ुश है, उसे किसी भी बात का कोई अफ़सोस नहीं है और वो किसी भी हाल में इस बात पर सहमत नहीं होता। अंत में उसने प्रिया को यही समझाया की उसे एक सम्पूर्ण परिवार के बारे में अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है। एक सम्पूर्ण परिवार होने के लिए किसी ख़ास लिंग का होने की जरूरत नहीं है बल्कि एक परिवार ख़ास बनता है उसमें रहनेवाले लोगों के बीच के प्यार से जहाँ हर कोई एक दूसरे को उसकी सभी कमियों और गुणों के साथ स्वीकार करता है। उसने प्रिया को आश्वासन दिया कि हमें अपने लालन पालन और हमारे बच्चों के ऊपर विश्वास होना चाहिए तभी वे एक अच्छे इंसान बनेंगे जो कि सबसे अहम बात है।
प्रिया विवेक की इस बात से पूर्णतः सहमत थी। वह एक फ़ोन करने को उठी।


“ किसे फ़ोन कर रही हो?”विवेक ने उत्सुकता से पूछा।
“ कामिनी और बाकी सभी महिलाओं को! आख़िर हमारी दूसरी राजकुमारी सॉफ़्टी के स्वागत में एक पार्टी तो बनती है ना! और फिर मुझे ये भी तो बताना है ना कि मुझे बुढ़ापे में एक बेटे की कमी कितनी खलेगी!!”
विवेक के चेहरे पर असमंजस देख प्रिया ने आँखों में शरारत भरते हुए कहा,” क्या विवेक तुम भी ना… अब बेटा नहीं होगा तो बहु नहीं होगी, बहु नहीं होगी तो मैं बुढ़ापे में किसकी चुग़ली करके अपना वक़्त काटूँगी? आज तक तुमने किसी सास को अपने दामाद की ऐसे बुराई करते देखा है क्या जैसे सास अपनी बहु की करती है। तो मतलब मेरा बुढ़ापा तो बिलकुल बर्बाद हो गया ना!!”…. इसके पहले की वह अपनी बात पूरी तरह ख़त्म कर पाती उसने विवेक की बाहों को अपने इर्द गिर्द कसता पाया और माथे पर एक गर्व भरा मीठा चुम्बन! इस मीठे पल की साक्षी बनी उसकी छोटी सी गुड़िया दोनो हाथों से अपना मुँह दबाकर खिलखिलाती हुई उनके चारों तरफ़ नाच रही थी। बस यही था वह क्षण जब प्रिया को अपने परिवार की सम्पूर्णता का पूर्ण एहसास हुआ ।

ख़ास संवाद: ये घटना एक सत्य अनुभव पर आधारित है ।

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